देखे ऐसे लोग..........
देखेऐसे लोग कि जिनके मन में कडुवाहट विष जैसी,
मन का मैल न जो धो पाईं, क्या रक्खा उन मुस्कानों में . .
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द्वेष भरे मन देखे जिनने नहीं किसी की करी प्रशंसा,
मतलब से जो गाए जाएँ, क्या रक्खा उन गुणगानों में . .
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मानवता के मूलधर्म को त्याग खा, रहे एक दूजे को,
हों सारे मानव ऐसे तो फर्क रहा क्या हैवानों में . .
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अत्याचार, अनीति, झूठ, और दंभ सहारे जिनके देखे,
दूजों के सुख में दुःख घोलें, फर्क बचा क्या शैतानों में . .
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जीवन की उलझी गलियों के सुख-दुःख में आशा से पाले,
जो न हो सके पूरे तो फिर क्या रक्खा उन अरमानों में . . . . . . .
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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