मैंने पुस्तक में पढ़ा --
घन्टों तक नहलाती हैं और घन्टों उसे सजाती हैं . . . . . . .
मैं उबटन-अंजन, केसर-चंदन, तिलक-दिठौना क्या जानूँ ?
मैंने धूल-धूसरित कान्हा की छवि नैनों बीच बसाई है - - -
मैंने कवियों से सुना --
यशोदा माँ , कैसे अपने मोहन को लोरी गा सुलवाती हैं -
घन्टों पहरा देती हैं और सबको चुप रखवाती हैं . . . . . .
मैं चंदन-पलना, मखमल-गादी, मोतियन-डोरी क्या जानूँ ?
मन में , पैर अँगूठा मुख में - बड के पत्ते पर छवि छाई है - -
मैंने मन्दिर में सुना --
यशोदा माँ , कैसे अपने मोहन को मोहन-भोग खिलाती हैं ,
घन्टों पकवान बनाती हैं फिर कर मनुहार खिलाती हैं . . . .
मैं खीर-पूड़ी संग दधि-ओदन और मालपुआ-मधु क्या जानूँ ?
मुझको मटकी के माखन से लिपटे मुख की छवि मन भाई है - -
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( सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना )
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