Saturday 18 May 2013

मेरे मन में बसी छवि.......

      
     मैंने पुस्तक में पढ़ा --
     यशोदा माँ , कैसे अपने मोहन का साज रोज सजवाती हैं -
     घन्टों तक नहलाती हैं और घन्टों उसे सजाती हैं . . . . . . .
     मैं उबटन-अंजन, केसर-चंदन, तिलक-दिठौना क्या जानूँ ?
     मैंने धूल-धूसरित कान्हा की छवि नैनों बीच बसाई है - - - 
                         
     मैंने कवियों से सुना --
     यशोदा माँ , कैसे अपने मोहन को लोरी गा सुलवाती हैं -
     घन्टों पहरा देती हैं और सबको चुप रखवाती हैं . . . . . .
     मैं चंदन-पलना, मखमल-गादी, मोतियन-डोरी क्या जानूँ ?
     मन में , पैर अँगूठा मुख में - बड के पत्ते पर छवि छाई है - -
  
    मैंने मन्दिर में सुना --
    यशोदा माँ , कैसे अपने मोहन को मोहन-भोग खिलाती हैं ,
    घन्टों पकवान बनाती हैं फिर कर मनुहार खिलाती हैं . . . .
   मैं खीर-पूड़ी संग दधि-ओदन और मालपुआ-मधु क्या जानूँ ? 
   मुझको मटकी के माखन से लिपटे मुख की छवि मन भाई है - -

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                                                ( सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना )
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