'' विरह में पीले पड़ गए पात ''
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तन उपवन मन सींच न पाया ,
अन्तर-पट तक भीग न पाया ,
सूखी धरा , घटा मुख ताके ,
बिरहिन का दुःख, बिरहिन जाया ,
मन मुरझाया , तन झुलसाया ,
सुख ने छोड़ा साथ..........
विरह में पीले पड़ गए पात...........!!
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( * सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना * )
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bahut sundar rachna .......virah vedna hoti hi aisi hai..........
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