'' कहाँ तक दरख्तों की गिनती करूँ मैं ?''
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न आवारा बादल की मस्ती-मल्हारें ,
न बूँदों की रिम-झिम न ठंडी फुहारें ,
झड़े फूल-पत्ते न कलियाँ न भँवरे ,
कहाँ तक तनों के भरम को भरूँ मैं ?
कहाँ तक दरख्तों की गिनती करूँ मैं ?
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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