ओ सखि.........!!
सखि , मैं चन्दा देख बढ़ी........!!
मैं तरंगिनी सागर-तनया ,
अपनी सब सीमाएँ जानूँ ;
सतत् प्रवाही मेरा जीवन ,
पर अपनी मर्यादा मानूँ ;
प्रेम-मगन , विरहिन , शीतल-तन -
लिये निहारूँ पन्थ पिया का ,
मिलन-निशा की तिथि मन ही मन -
पूनम-रात गढ़ी..............
सखि ! मैं चंदा देख बढ़ी . . . . . !
सखि ! मैं चंदा देख बढ़ी . . . . . !!
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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