आओ मन , हम-तुम बात करें .........
आओ मन हम-तुम बात करें , बीती घड़ियाँ कुछ याद करें - - - - -
जब बीती घड़ियों में जाती , अंतहीन सा चक्कर पाती -
यादें मेरी - भूल-भुलैया , उनमें ही बस खोती जाती . .
यादों का है मेरा खजाना , अब कुछ और नहीं है पाना
चाहे मन में रखूँ - छुपाऊँ , चाहे बाँटूं और लुटाऊँ . .
उनमें से मोती चुन-चुन कर , खुद पर हम बरसात करें -
आओ मन हम-तुम बात करें - - - - - - - - |
जाने कितनी ऐसी बातें , बातों के भीतर की घातें . .
आँखों में आँसू लाती हैं , आँसू में खुद को पाती हैं ;
पर आँखे सहेज ना पातीं , इन मोती की लड़ियों को -
गिर कर साथ छोड़ देती हैं , बाँध न पातीं कड़ियों को ;
काल-चक्र से जीत न पाएँ , कितनी ही शह-मात करें -
आओ मन हम-तुम बात करें - - - - - - - - |
याद करूँ जब सारा जीवन , अंदर से कुछ-कुछ रिसता है ,
भीगी लकड़ी सा मन जलता , बे-आवाज़ दर्द पिसता है . .
छूट गए पीछे सब साए , हम हाथों से पकड़ न पाए ,
टीस बड़ी उठती है मन में , बीता वक़्त हाथ आ जाए . .
कैसे मिले , कहाँ से पाएँ , किससे अब फ़रियाद करें -
आओ मन हम-तुम बात करें - - - - - - - - ||
आओ मन हम-तुम बात करें , बीती घड़ियाँ कुछ याद करें . . . . .
आओ मन . . . . . . आओ मन . . . . . . आओ मन . . . . . . . .!!
*******************************************************************************
सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
********************************************************************************
sunder bhav.............
ReplyDeleteयाद करूँ जब सारा जीवन , अंदर से कुछ-कुछ रिसता है ,
ReplyDeleteभीगी लकड़ी सा मन जलता , बे-आवाज़ दर्द पिसता है . .
....बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...