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प्रकृति हमारी चिर-सखी , मानव-प्रकृति बताय ;
वृक्ष हमारे मित्र हैं , जीवन पाठ पढ़ायँ . . . ||
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बीज धरा में पल रहा , प्रकृति स्वयं पनपाय ;
अंकुर फूटे - जन्म ले , धरती माँ बन जाय . . . ||
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कोमल किसलय जब बढ़ें , नित हरीतिमा पायं ;
पके-पात पीले पड़ें , आखिर में झड़ जायं . . . ||
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बौर खिलें , अमियाँ लगें ,समय पायं - गदरायँ ;
आम पकें - तब झड़ चलें , जीवन-गति समझायं . . . ||
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सूखी गुठली आम की , मिट्टी-पानी पाय ;
प्राण-वायु , पर्यावरण , छाया , फल दे जाय . . . ||
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पतझड़ में पत्ते झड़ें , फिर वसंत आ जाय ;
जीवन का यह चक्र है -सुख-दुःख आकर जायं . . . ||
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बूढ़े बरगद की जटा , जब नीचे झुक जाँय ;
जैसे पोते की तरफ - दादा हाथ बढ़ायँ . . . ||
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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सार्थक संदेश देते बहुत सुन्दर दोहे..आभार
ReplyDeleteआपके द्वारा रचित दोहे बहुत अच्छे हैं!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार!
bahut hi sundar chitran hai prakriti ka --------aabhar
ReplyDeleteप्रकृति प्रेम की पंक्तियाँ और हरा है रंग
ReplyDeleteचाहत है जीयें सुमन सदा प्रकृति के संग
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
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