Thursday, 20 December 2012

दीवाने से दिन आए - - - - -



            दीवाने से दिन..........




       





 दीवाने से दिन आए - - - - - - 
    
आँख अचानक हुई पराई , बौराया सा मन लगता है ,
होंठ हमेशा कंपना चाहें , घबराया सा तन लगता है ;
इस घबराहट में भी हरदम मुस्काने के दिन आए - - - -
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कोई बोला ? सिहर उठा मन , पर देखा कोई न बोला !
और किसी की सच पुकार पर, मेरा मन कुछ क्यूँ न  बोला ?
मन की बातें मन से सुन कर , शर्माने के दिन आए - - - -
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कोयल की कू-कू का मतलब , आज समझ में क्यूँ आया है !
और पपीहे की पुकार में , मुझे याद कोई आया है !
फूल-कली , भँवरे की गुन - गुन सुन पाने के दिन आए - - - -
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अपनों को बेगाना सा अब कहने को क्यूँ मन करता है ?
और पराया - अपना बन कर , हरदम मन में क्यूँ रहता है ?
उसी पराए की सुधियों में , खो जाने के दिन आए - - - -
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आज किसी ने कहीं हवा में , भाँग मिलाई धीरे-धीरे !
और धूप ने करी शरारत , बनी चाँदनी धीरे-धीरे !!
एक रूप क्या चाँद और सूरज ? - बौराने के दिन आए - - - -
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दिन में रात, रात में दिन क्यूँ लगता है , क्या हो जाता है ?
रात जाग कर और विवश दिन - सोने में क्यूँ कट जाता है ?
सोऊँ  या जागूँ - सपनों में खो जाने के दिन आए - - - -
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गर्मी में वसन्त क्यूं लगता , लगे हवा भी फगुनाई सी ,
फूलों पर भँवरे क्यों दिखते , बौर से लदी  अमराई सी !
लगता है अब सब कलियों के खिल जाने के दिन आए - - - -
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कैसे थे ? क्या-क्या बोले थे ?? बोली उनकी कैसी थी ???
सच कहना - तूने देखी थी ? चितवन किसके जैसी थी ??
पूछेंगी सब मिल , सखियों से घिर जाने के दिन आए - - - -
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मन की बात न मुँह से निकले, चैन न हो मन को बिन बोले ,
आखों में कोई पढ़ ले , तो झिझकें आँखें हौले-हौले ,
मन-चाहे प्रश्नों से भी अब , अकुलाने के दिन आए - - - -
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दर्पण से जा कर पूछा - क्या तुम्हें पता है इसका राज़ ?
मुस्का कर बोला - भोली हो ! आओ तुम्हें बताऊँ आज ,
समझो ज़रा -  '' तुम्हारे - उनके हो जाने दिन आए !!''

दीवाने से दिन आए...दीवाने से दिन आए...दीवाने से दिन आए.....
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             सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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