Tuesday 6 August 2013

मैंने बस इतना जाना है............

तुम में मेरे अनदेखे से कुछ सपने थे, वे जैसे भी थे मगर सभी मेरे अपने थे |
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नन्हें थे तब किलकारी से घर को भरते, पैर मोड़ कर एक अँगूठा मुँह में धरते ;
मैं ढूँढा करती थी तब भी बड का पत्ता, वह मुस्कान तुम्हारी मोहक थी अलबत्ता |
मेरे सिवा न कोई समझा तुतली बतियाँ, भोलेपन से सब कह देतीं नटखट अँखियाँ ,
मन ना पाया पार, देखकर उठी ललक थी, तुम में ढूँढे ‘’कृष्ण’’ कि क्या मैं कहीं गलत थी ?
                                     
ज़रा बढ़े कुछ समझे जग के रिश्ते-नाते, पद मर्यादा कैसे समझे कह ना पाते ;
मन की बात सदा ही मुझसे छिप कर बोले, कभी पिता के सम्मुख मुँह से कुछ ना बोले |
सबको देते मान कि सबका करते आदर, फूल झड़े वाणी से बोली ऐसी सुखकर ,
मन ना पाया पार, देखकर उठी ललक थी, तुम में ढूँढे ‘’राम’’ कि क्या मैं कहीं गलत थी ?
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अब समझे ममता-माया की नई कहानी, दया-क्षमा इतनी तुम में क्यों मैं ना जानी ;
दिल न किसी का दुखे यही तुम हर-दम कहते, किसी और का दुःख देख तुम व्याकुल रहते |
कुछ बातें सांसारिकता की मुझे सुनाते, कुछ विराग के प्रश्न-उलझ कर जो रह जाते ,
मन ना पाया पार, देख कर उठी ललक थी, तुम में ढूँढे ‘’बुद्ध’’ कि क्या मैं कहीं गलत थी ?
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और बड़े तुम हुए कि अब कविता लिख लाए, मैंने तुम्हें टटोला- नन्हा कवि दिख जाए ;
पढ़ने में आगे थे यह मैंने माना था, पर कवि कहाँ छुपा था अब तक ना जाना था |
कविता थीं दुःख की सुख की करुणा के रस की, भावों के रूपों की सिर्फ तुम्हारे बस की ,
मन ना पार देख कर उठी ललक थी, मैं ढूँढूँ टैगोर कि क्या मैं कहीं गलत थी ?
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देखा कलाकार भी तुम में बसा हुआ था, सीखोगे सब – यह निश्चय भी कसा हुआ था ;
लिपि हो या हो चित्र-कला, सबमें आकर्षण, वाद्य छुओ तो स्वर फूटें करते ही घर्षण |
स्वर की पूरी पकड़ कहाँ से तुमको आई, नाद-ताल की परख कहाँ से मन को भाई ,
मन ना पाया पार देख कर उठी ललक थी, हो‘’सरस्वती-वरदान’’कि क्या मैं कहीं गलत थी ?
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कहीं गलत थी क्या मैं ? यह जो आज सोचती, उत्तर पाने को क्रमशः हर प्रश्न रोपती ;
मन प्रमुदित हो जाता है,पुलकित हो जाते गात,होनहार-बिरवा तुम लगते जिसके चिकने पात
कृष्ण-राम और गौतम बुद्ध कहाँ से आए,कवि टैगोर,कला के ज्ञाता, सब ‘’माँ जाए’’ ,
मैं भी माँ हूँ मैंने भी इतना माना है- ''तुम'' सब हो, सब तुम में हैं इतना जाना है ||

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                           सर्वाधिकार सुरक्षित , स्व-रचित रचना
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