संस्कार डालें. . . . . . . . .
* आओ सखि, आओ ! कुछ ऐसा कर डालें !! *
रोज़ की हमारी कई आदतों से तौबा करें ,कुछ दिन के वास्ते हम इन्हें बदल डालें- - - -
आओ सखि, आओ ! कुछ ऐसा कर डालें !!
सुबह देर से न उठें , उठ कर ऐसा भी न कहें -
ओह शिट ! आय एम लेट !! , मूड ना बिगाड़ें....
इसके बदले जल्दी उठ कर हाथों को देख -
मन्त्र पढ़ें प्रातः का , श्रद्धा से बोलें --
'' कराग्रे: वसते लक्ष्मी , कर मध्ये सरस्वती ,
कर मूले स्थिते ब्रम्हा - प्रभाते कुरु दर्शनम् '' !
और फिर धरती को प्रणाम कर पाँव धरें ,
फुर्ती से सुबह के सारे काम निपटा लें |
बच्चों को सिखाएँ- सुबह उठ कर वे प्रणाम करें ,
आप उन्हें हँसकर कई आशिष दे डालें |
बच्चे या बड़े जब भी बाहर जाएँ या आएँ -
बाय-बाय , हाय-हाय बिल्कुल भुलादें -- |
करें अभिवादन सभी छोटे , हाथों को जोड़ ,
आते-जाते बड़े - उनका मंगल मना लें |
बोली शालीन हो , पहनावे में मर्यादा ,
बच्चे हों या बड़े, सभी आदत यही डालें |
जितने लोगों से मिलें - आदर सभी का करें ,
'' मदद और बचत'' की अच्छी आदत अपना लें |
पड़ोसन को 'आँटी' न पुकारें , उनसे भी ज़रा -
अपनों जैसा ही कोई 'रिश्ता' बनालें ,
भाभी, दीदी, बहना, चाची, मौसी या बुआ ,
बूढ़ी हों तो दादी-नानी कह कर बुलालें |
नाश्ता और खाना बनाएँ कुछ अपना सा -
मैगी, पिज्ज़ा, नूडल्स को बिलकुल भुला दें |
डब्बा-बंद फ़ूड ना खिलाएँ और ना खाएँ कभी
ताज़ा पौष्टिक सा कोई व्यंजन बना लें |
खाने का पहले भोग प्रभु का, फिर भोजन मन्त्र -
बच्चों को सिखाएँ , साथ खुद भी कह डालें |
सन्ध्या की आरती जगाएं सभी मिल-जुल कर
सोने से पहले भी प्रभु को मना लें - ->
''सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः ,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग् भवेत् ||''
( कुछ दिन करने में अगर मन को यह भाने लगे -
सदा के लिए इसको घर-भर अपना ले )
'' संस्कृति महान् अपनी, देश है महान् अपना - आओ सब मिल अपनी संस्कृति बचा लें | ''
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( सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना )
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