युगों से झिल-मिल चमकती धूप का अंदाज़ देखा ,
हर चमक थी दृष्टि तक, जो हृदय-पट ना सेंध पाई ,
यह अनोखी भोर आई झिलमिलाती काँपती सी ,
दृष्टि-पथ से दीप्ति आई हृदय-तम को भाँपती सी ,
भूल सुध-बुध मैं अचम्भित ढूँढती कारण फिरी -
या किसी मालिन का छूटा टोकरा - जो ना संभाला ?
या कि पुरवाई उड़ाती आ गई फूलों की घाटी ?
या मलय की नव-बहारें चूमने आईं हैं माटी ,
या अगर की गन्ध मन्दिर से हर इक कोने में फ़ैली ?
या हवन की धूप करती है सुवासित यह हवेली ?
भूल सुध-बुध , मैं अचम्भित , ढूँढती कारण फिरी -
झाँक देखा द्वार पर - ''दो फूल'' मुस्काते खड़े हैं.........
एक सिहरन , तृप्ति की अनुभूति मन ने आज पा ली ,
आस बरसों की हुई पूरी , खुशी - खुश हो संभाली ,
आज मेरा स्वप्न - जो साकार हो कर द्वार आया ,
हर खुशी इनको मिले , जीवन सफल बसता रखे ,
भूल सुध-बुध मैं अचम्भित ढूँढती कारण फिरी -
भूल सुध-बुध मैं अचम्भित ढूँढती कारण फिरी -
झाँक देखा द्वार पर-''दो प्यार के पंछी'' खड़े हैं...|
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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