'' विरह में पीले पड़ गए पात ''
* * *
तन उपवन मन सींच न पाया ,
अन्तर-पट तक भीग न पाया ,
सूखी धरा , घटा मुख ताके ,
बिरहिन का दुःख, बिरहिन जाया ,
मन मुरझाया , तन झुलसाया ,
सुख ने छोड़ा साथ..........
विरह में पीले पड़ गए पात...........!!
%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%
( * सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना * )
%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%