जब तोषक से तुलसी की तुलना हुई तूल सी ||
मानव के धर्म , प्रभु-प्राप्ति के कर्म और
'' मानस'' के मर्म समझ पाया नहीं कोई |
''कविता-वली'' से बही करुणा की स्रोत गंग ,
भाव की तरंग भूल पाया नहीं कोई
''विनय-पत्रिका'' में ऐसे भावों का भव्य रूप -
''विनय-पत्रिका'' में ऐसे भावों का भव्य रूप -
अन्तर का झूला झूल पाया नहीं कोई |
''बरवै-रामायण'' ने जगत को ही सिखा दिया -
अन्तर का दुःख कैसी वेदना है शूल सी ||
''हुलसी'' हिय हुलसी अन्य रचनाएँ झुलसीं ,
जब तोषक से तुलसी की तुलना हुई तूल सी ||
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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