Tuesday, 16 July 2013

ओ सखि बदली.......


ओ सखि,बदली......!! 

                 ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!

क्या याद तुम्हें है, कब बिछुड़ी थीं मुझसे तुम ?
दिन-रात , मास कितने  बीते - होकर गुम-सुम  ??
जब विलग हुईं थीं मुझसे - थीं ख़ाली-ख़ाली ,
अब इतने अश्रु समेट कहाँ से भर लाईं ?
                        ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!

सखि, कहो वेदना अब मुझसे अपने दिल की ,
जो बीती तुम पर व्यथा - कहो इतने दिन की ,
मैं भी व्याकुल हूँ तुमसे अपनी कहने को ,
मेरे मन के बातें सुनने  ,तुम घिर आईं ;
                        ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!

कितनों का दुःख समेट भरा तुमने उर में ?
कितनों का दर्द पिया सुन कर विपदा तुमने ?
अन्तर की पीड़ा आज मुझे बतला दो तुम ,
सबकी पीड़ा से कितनी करुणा भर लाईं ?
                        ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!

मेरी आँखों के संग आज तुम भी बरसो ,
मन हल्का कर लो और न अब घुट-घुट तरसो ,
तुम मुझसे अपनी कहो आज और मैं तुमसे ,
लो , तुम्हें देख आँखें मेरी भी भर आईं --
                                   ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!

ओ सखि बदली......! ओ सखि बदली......!! ओ सखि बदली....!!!

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                                       सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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