ओ सखि,बदली......!!
ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!
क्या याद तुम्हें है, कब बिछुड़ी थीं मुझसे तुम ?
दिन-रात , मास कितने बीते - होकर गुम-सुम ??
जब विलग हुईं थीं मुझसे - थीं ख़ाली-ख़ाली ,
अब इतने अश्रु समेट कहाँ से भर लाईं ?
ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!
सखि, कहो वेदना अब मुझसे अपने दिल की ,
जो बीती तुम पर व्यथा - कहो इतने दिन की ,
मैं भी व्याकुल हूँ तुमसे अपनी कहने को ,
मेरे मन के बातें सुनने ,तुम घिर आईं ;
ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!
कितनों का दुःख समेट भरा तुमने उर में ?
कितनों का दर्द पिया सुन कर विपदा तुमने ?
अन्तर की पीड़ा आज मुझे बतला दो तुम ,
सबकी पीड़ा से कितनी करुणा भर लाईं ?
ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!
मेरी आँखों के संग आज तुम भी बरसो ,
मन हल्का कर लो और न अब घुट-घुट तरसो ,
तुम मुझसे अपनी कहो आज और मैं तुमसे ,
लो , तुम्हें देख आँखें मेरी भी भर आईं --
ओ सखि बदली ! बहुत दिनों में तुम आईं !!
ओ सखि बदली......! ओ सखि बदली......!! ओ सखि बदली....!!!
*****************************************************
सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
*****************************************************
No comments:
Post a Comment