उगते सूरज की लाली में........
मन डूब-डूब जाता है.............!!
मन्त्रों के सुरीले जाप में , भैरवी के आलाप में ,
ओम् के उच्चार में , ऊर्जा के संचार में ,
आरती के छन्द में , अगर की सुगंध में ,
मन में कही प्रार्थना में , सुर में गाई वन्दना में -
मन डूब-डूब जाता है........
आरती की सजी थाली में , उगते सूरज की लाली में ,
आशीर्वचन की बोली में , मस्तक पर लगी रोली में ,
भजन के मीठे बैन में , श्रद्धा से झुके नैन में ,
विचारों की सादगी में , पवित्रता की बानगी में ,
मन डूब-डूब जाता है........
मुरली की मीठी तान में , रूठी राधा के मान में ,
मोर-पंख के रंग में , मन की जल-तरंग में ,
कोहरे से भरे प्रात में , झरते जल-प्रपात में ,
फूल पर जमी बूँद में , भँवरे की निरंतर गूँज में ,
मन डूब-डूब जाता है.......
पानी से नहाई बगिया में , कल-कल बहती नदिया में ,
गुड़ाई की हुई क्यारी में , फूल पर तितली की सवारी में ,
हरे-भरे से खेत में , नदी किनारे रेत में ,
रहट के संगीत में , तोता-मैना की प्रीत में ,
मन डूब-डूब जाता है........
चुग्गा देती चिड़िया में , घूँघट ओढ़ी गुड़िया में ,
नन्हें की तुतली भाषा में , मुन्नी के नैनों की आशा में ,
नीर भरी एक बदली में , सावन में गाई कजली में ,
झोंके की ठँडी बयार में , खिड़की से आती फुहार में ,
मन डूब-डूब जाता है........
धूल उड़ाती पुरवाई में , बौर लदी अमराई में ,
ज़िद्दी कोयल की कूक में , विरही पपीहे की हूक में ,
बैलों की घंटी की टन-टन में , पनिहारिन के पैरों की छन-छन में ,
बादलों में उड़ती पतँग में , दो सखियों की बातों के ढंग में ,
मन डूब-डूब जाता है.......
मदद को बढ़े हाथ में , बिना स्वार्थ के साथ में ,
निःस्वार्थ सेवा-भाव में , सबकी खुशियों के चाव में ,
योग्य के गुण-गान में , बिना दिखावे के दान में ,
हर द्वन्द के समाधान में , शान्त मन के ध्यान में
मन डूब-डूब जाता है........
मन डूब-डूब जाता है.............. मन डूब-डूब-जाता है.................
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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