आज अब तक पी न आए . . . . .आज अब तक पी न आए . . . . . .
है चकोरी शान्त ,बुलबुल भी न गाती ,
गूँज भँवरे की नहीं कुछ भी सुनाती ,
तितलियाँ थिरकीं नहीं फूल औ' कली पर ,
मस्त पुरवाई रुकी सब को उड़ाती ;
अनमनी सी हो गई कोयल न गाए -
आज अब तक पी न आए . . . . . . . . . .
मैं सजी कुम-कुम लगाया भाल पर ,
शर्म की लाली सी छाई गाल पर ,
माँग भर खुद को निहारा तब लगा -
नैन का कजरा हँसा इस हाल पर ;
उन बिना सिंगार भी मन को न भाए -
आज अब तक पी न आए . . . . . . . . .
हर पहर, हर पल रही इस में उलझती ,
आ रहें हैं इसी क्षण 'प्रिय' यह समझती ,
पर नहीं आए , कि आई साँझ-बेला ,
मैं निहारूँ बाट आशा में विकलती ;
चाहती हूँ - ''आ गए '' - कोई सुनाए -
आज अब तक पी न आए . . . . . . . . . .
न आए . . . . . . . . न आए . . . . . . . . . न आए . . . . . . . . .न आए ||
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सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
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