चल पड़े सुबह से जो राही अपने पथ पर ,
वो क्या जानें बिन चले कि पथ कैसा होगा ;
ऊबड़-खाबड़ होगा या दुर्गम-सुगम कहीं -
निज सूझ-बूझ से पार उसे करना होगा |
यदि दूर कहीं मंज़िल का दीपक दिखे कहीं ,
उस तक जाने में मग का तम सहना होगा ;
राहों में बाधा आएँ या कंटक बिखरें -
दृढ़ता से धीरज रख कर सब चुनना होगा |
विपदाओं की आँधी आ जाए यदि पथ में ,
बिन काँपे डगमग , पैर जमा चलना होगा ;
यदि बाढ़ दुखों की घेरे जीवन की सरिता -
हर भँवर-लहर के वेग झेल बढ़ना होगा |
यदि तड़ित दामिनी गिर कर नष्ट करे सब-कुछ ,
फिर नए सिरे से जीवन-क्रम रचना होगा ;
और मन या तन विचलित हो घबरा जाए कभी -
तब धैर्य निभा ''प्रभु-नाम'' सदा जपना होगा !!
******************************************************
सर्वाधिकार सहित , स्व-रचित रचना
******************************************************
No comments:
Post a Comment